Monday, September 20, 2021

100 साल बाद दुर्लभ संयोगों की साक्षी में श्राद्ध पक्ष

  vishvas shukla       Monday, September 20, 2021

 उज्जैन। भाद्रपद मास की पूर्णिमा पर सोमवार से 100 साल बाद विशिष्ट व दुर्लभ योगों की साक्षी में श्राद्ध पक्ष आरंभ होगा। 17 दिवसीय पर्वकाल में प्रतिपदा पर सर्वार्थसिद्धि योग का संयोग रहेगा। सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या पर भी गज छाया योग के साथ सर्वार्थसिद्धि योग की साक्षी रहेगी। धर्मशास्त्र के जानकारों के अनुसार श्राद्ध पक्ष में सभी तिथियां पूर्णत: लिए हुए हैं। किसी भी तिथि का क्षय नहीं है। 17 दिनों में पांच सर्वार्थसिद्धि, एक अमृत गुरु पुष्य योग तथा एक बार गज छाया योग बनेगा। पंचांग के पांच अंगों के साथ ग्रह नक्षत्रों की प्रबल साक्षी में पितरों के निमित्त तीर्थ श्राद्ध करने से पितृ तृप्त व प्रसन्न होकर परिवार में सुख-शांति, ऐश्वर्य, कार्यसिद्धि तथा वंश वृद्धि का वरदान देते हैं।

ज्योतिषाचार्य ने बताया कि ब्रह्म पुराण व यम स्मृति का मत है कि मनुष्य को पितरों की तृप्ति और अपने कल्याण के लिए श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। जो मनुष्य अपने वैभव के अनुसार विधिपूर्वक श्राद्ध करते हैं, वे साक्षात ब्रह्मा से लेकर तृण पर्यंत समस्त प्राणियों को तृप्त करते हैं। श्रद्धा पूर्वक विधि-विधान से श्राद्ध करने वाला मनुष्य ब्रह्मा, इंद्र,रुद्र अश्विनी कुमार, सूर्य, अग्नि,वायु, देव, मित्रगण, पशु, भूतगण तथा सर्वगण को संतुष्ट करते हैं। श्राद्ध करने के कुछ नियम हैं, इनका पालन करते हुए यथाविधि श्राद्ध करने से श्राद्धकर्ता की पीिढयां तृप्त हो जाती हैं।


इस समय करें श्राद्ध

मत्स्य पुराण के अनुसार पितरों के निमित्त श्राद्ध करने के लिए समय का विशेष ध्यान रखना चाहिए। दिन का आठवां मुहूर्त अर्थात सुबह 11 बजकर 36 मिनट से दोपहर 12 बजकर 24 मिनट तक का समय श्राद्ध करने के लिए सर्वश्रेष्ठ बताया गया है।

श्राद्ध में इसका उपयोग विशेष

श्राद्ध में तुलसी, हल्का पीला चंदन, सफेद चंदन तथा खस का उपयोग करने से पितृ प्रसन्न् होते हैं। पितरों को सफेद रंग के पुष्प अति प्रिय हैं। कदंब, केवड़ा, मोरसली, बेलपत्र तथा लाल, नीले व काले रंग के पुष्प पितरों को अर्पित नहीं करना चाहिए।

नाम व गोत्र का उच्चारण आवश्यक

पितरों को जल, धूप व नैवेद्य अर्पित करते समय सर्वप्रथम अपने नाम तथा गोत्र का उच्चारण करना चाहिए। धर्मशास्त्री के अनुसार अपने नाम व गोत्र से दिया गया जल, अन्ना, रस पदार्थ अपने पितरों को विभिन्ना योनियों में प्राप्त होते हैं।

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