Thursday, November 11, 2021

क्या डिंपल को खुद से ऊपर रख पाएंगे अखिलेश?- - अतुल मलिकराम

  Anonymous       Thursday, November 11, 2021

पिछले विधानसभा चुनाव में आंतरिक संघर्ष से जूझ रही, समाजवादी पार्टी इस बार कोई रिस्क लेने के मूड में नहीं है. खबर है कि  प्रत्याशियों की सूचि जारी की जा सकती है. वहीँ दूसरी तरफ चुनावी रैलियों का दौर भी शुरू हो चुका है. #बाइसमेंबाइसिकिल का नारा सड़क से सोशल मीडिया तक बुलंद हो रहा है. फिर मेरी बात उनके कानों तक भले देर में पहुंची हो, लेकिन डिंपल को सियासी मैदान में उतारने का काम भी उन्होंने तय समय पर किया है. दशहरा पर आश्चर्यजनक रूप से डिंपल का विरोधियों पर हमलावर होना काफी हद तक समाजवादियों के पक्ष में जाता है. शायद अखिलेश को भी उनसे इसी तरह का रुख अख्तियार करने की उम्मीद होगी. जो पार्टी कार्यकर्ताओं में थोड़ी और जान फूंकने के साथ प्रदेश की जनता को सपा की साइकल पर एक बार फिर सैर करने के बारे में सोचने पर मजबूर करेगा.


मार्च 2017 में सत्ता संभालने के साथ ही योगी आदित्यनाथ ने महिला सुरक्षा को सबसे अधिक तवज्जो देते हुए ऐंटी रोमिओ स्कॉड बना दी, रोड छाप रोमियों के साथ गुंडे बदमाशों को प्रदेश छोड़ने की धमकी भी दे दी. लेकिन पिछले साढ़े चार सालों का आपराधिक रिकॉर्ड देखें तो योगी सरकार, बलात्कार से लेकर गंभीर मामलों तक में अखिलेश की पिछली सरकार से बीस ही नजर आती है. ऐसे में सपा समेत अन्य विरोधी दलों के पास महिला सुरक्षा अभी भी एक जटिल और उकसाऊ मुद्दा है. ऐसे में सपा अपनी महिला ब्रिगेड को संभालने की जिम्मेदारी, आँख मूँद डिंपल को सौप सकती है.



मेरी नजर में आगामी विधानसभा चुनावों में सपा के लिए डिंपल को मुख्यमंत्री पद के लिए प्रमोट करना अधिक फायदेमंद साबित हो सकता है. यह सिर्फ उत्तर प्रदेश की महिला वोटरों को साथ लाने के लिए नहीं बल्कि प्रदेश को पहली युवा समाजवादी महिला मुख्यमंत्री देने के मकसद से भी सही साबित होगा. बेशक उनके पास सरकार चलाने का अनुभव नहीं होगा, लेकिन सरकार में रह चुके लोगों का अनुभव, खासकर खुद पूर्व मुख्यमंत्री का मार्गदर्शन उन्हें प्राप्त होगा. हालांकि इन सब में सिर्फ एक ही सवाल से सपा को पार पाने की जरुरत है. 'क्या अखिलेश को खुद से ऊपर रख पाने में सहज महसूस करेंगे? शायद नहीं, उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने की पहल में जनता का खूब प्यार बटोरा है. एक झटके में खुद को उम्मीदवारी से हटाना उनके लिए आसान नहीं होगा, हालाँकि योगी जी से कुर्सी छीनना भी सिर्फ डिंपल के ही बस में होगा, यह भी निश्चित है.    



                     

उत्तर प्रदेश के 2022 विधानसभा चुनावों में प्रत्याशियों को टिकट देने से पहले उनकी क्षमताओं को परखने का काम किया जा रहा है, वह भी प्रोफेशनल एजेंसियों के द्वारा. इतना ही नहीं संभावित प्रत्याशियों का आकलन और आतंरिक फीडबैक के बाद ही प्रत्याशियों की नियुक्ति होगी. 2017 के चुनावों में कांग्रेस के साथ गठबंधन के कारण, सपा को जल्दबाजी में अपने प्रत्यासी घोषित करने पड़े थे. वहीँ गठबंधन के चक्कर में सपा को 114 सीटें छोड़नी पड़ी थीं. जिनमें से अधिकांश सीटें भाजपा के पास चली गई थीं. अब इन सीटों पर भी जल्द प्रत्याशियों की घोषणा की जाएगी. जाहिर है इस बार सपा के पास खुला मैदान है और वह मैदान के चारों तरफ अपनी फील्डिंग सजा सकती है, बस जरुरत है तो कप्तान के नाम में थोड़ी बहुत हेर फेर करने की.

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